प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरी जोशी के साथ


साहित्यकार श्री ध्रुव शुक्ल के साथ
जब, उन्होंने अपने मंत्री मंडल का विस्तार किया तो विपक्षियों ने कहा कि, ‘‘सभी दागियों-बागियों को वापस बुला लिया है।’’ मुझे बहुत बुरा लगा वे भी तो कभी सत्ता में रहे हैं। क्याहम्माममें, मैं ही कपड़े पहने खड़ा रहूँ ?! वैसे भी, हमारी पार्टी में जो भी बुर्जुग नेता हैं, वे धीरे-धीरे भगवान को प्यारे होते जा रहे हैं। यहाँ हमारी पार्टी की अपूर्णीयक्षति होती जा रही है और आपदागी-बागियोंकी बात करते हैं। कहते है, यदि उठा लिया जावे तो, ‘खोटा सिक्काभी वक्त पर काम आता है। गांधीजी ने कहा हैपाप से घृणा करो, पापी से नहींबोले तोभ्रष्टाचार से घृणा करो भ्रष्टाचारी से नहीं।हम सर्वपक्ष सम्भाव के मूलमंत्र में विश्वास करते हैं, शिष्टाचार हो या भ्रष्टाचार!
मैं, हमेशा अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से कहता हूँ - ‘सबके हित में, अपना हित।आपके क्षेत्र और देश का विकास हो या हो, आपका व्यक्तिगत विकास अवश्य ही हो जायेगा।हम साथ-साथ हैं’, का मूलमंत्र याद रखो। यदि, ‘अनेकता में एकताके दर्शन करना है, तो हमारी पार्टी को देखो! कैसे अलग-अलग रंग और खुश्बू केफूलखिले हैं इसमें, ‘दल-दलको मत देखो उसमें निर्लिप्तकमलको देखो! कैसा खिल रहा है!! दुनिया के हित चिंतक, चिंता में आकंठ डूबे हैं। विश्व की आने वाली पीड़ी में नेकनियत और इंसानियत हो या हो वह अच्छा इंसान भले ही बने लेकिन उसका कुशल व्यापारी बनना, इसलिए परमावश्यक है कि अब दुनिया एक बाजार बन गयी है जहाँ खुली प्रतियोगिताएँ चल रही हैं। उसे उन प्रतियोगिता से निपटना आना जरूरी है। दुनिया के बाजार में अब सब कुछ बिक रहा है यहाँ तक कि जहाँ मर्यादायें और नैतिकता बिकनी पहनें बाजार में बिकने खड़ी हों।
चुनाव आते ही पार्टी मेंमना-मनौअलशुरू हो जाता है। रूठे को मनाने की चेष्टा की जाती है वह मचलते हुए बच्चे की तरह जो मांगता है, उसे वह दे दिया जाता है या सत्ता में आते ही देने का वायदा कर दिया जाता है। पार्टी के बिखरे मोतियोंको फिर से एक सूत्र में गूंथा जाता है। नेता मतदाता का पुराना प्रेम परवान चढ़ने लगता है। आप उसकी पुरानी वादा खिलाफी को क्षमा कर देंगे क्योंकि क्षमा हमारे देश का राष्ट्रीय संस्कार है। वीरों का भूषण है।कहा भी है क्षमा वीरस्य भूषणम्।
मतदाता इस बार जागरूक भी है और चिंतिंत भी। मगर हर बार की तरह ऊहापोह की स्थिति में है कि, किस पार्टीको चुनें, किसे नहीं। किस नेता को वोट दें, किसे नहीं। प्रजातंत्र के बाजार मेंवेरायटीअनेक हैं मगरक्वालिटीनगण्य। सो, मतदाता की चिंता लाजिम भी है। मगर भैय्या...! वोट तो देना ही पड़ेगा न। साँपनाथ को नहीं दोगे, तो नागनाथ को देना पड़ेगा। फलाने को नहीं दोगे तो ढ़िकाने को देना पड़ेगा। इन दोनों को नहीं दोगे तो कोई और तुम्हारा वोट दे देगा। यह प्रजातंत्र है भाई, कोई मजाक नहीं यहाँ सबकुछ चलता है। यहाँ जीवितों के तो क्या मरे हुए लोगों के भी वोट डाल दिये जाते हैं मुख्य यह नहीं है कि मतदाता मृतक है या जीवित! मुख्य यह है कि प्रजातंत्र जीवित रहे और प्रजातंत्र तब ही जीवित रह सकता है जबमतकादानहो। हम सभी इस कर्त्तव्य की सुखद डोरी से बंधें हैं।
चुनाव प्रचार में अक्सर शासन करने वाली पार्टीयों के विरोध में कहा जाता है कि, ‘उन्होंने इतने वर्षो आपको लूटा।एक बार हमें भी मौका दो।इस मौका देने का क्या अर्थ है? आप सेवा करेगें या लूट? मौका काय का भैय्या ? मेरे एक मित्र ने जो अब एक नेता हो गया है मुझसे कहा - ‘भ्रष्टाचार एक कला है, और नेता उसका कलाकार।कला विहीन मनुष्य पशु के समान है पशु होने से अच्छा है कि भ्रष्टाचार अपना लिया जाये, जो नहीं अपनाते हैं उन्हें भ्रष्टाचार खुद अपना लेता है। भ्रष्टाचार को खोजना नहीं पड़ता वह तोकस्तूरी सा मृग के कुण्डलमें बसागंधछोड़ता रहता है।
आपने तो सुना ही होगा कि,‘पैसा खुदा तो नहीं, मगर खुदा की कसम, खुदा से कम भी नहीं!’ हर किसी को चिंता है पैसा कमाने की। पैसे को बढ़ाने की। किसी की नज़र चकमदार सोने पर होती है, जो उन्हेंस्वर्णमृगकी तरह ललचाता है। हर दिन सोने केउछालके साथ उसकी तिजोरी में कितनी चमक बढ़ेगी ? तो कोई जमीन-जायदादखरीदने में पैसा लगाना चाहता है। क्योंकि, आज नहीं तो कल जमीन के दाम बढ़ ही जायेंगे चोरी होने का कोई डर नहीं।
मैं आपको पैसा कमाने का एक नया फार्मूला बताता हूँ। ये फार्मूला एकदमफिटऔरहिटहै! कोई शक-शुबहा इसको लेकर नहीं है और ये हर हाल में पैसा बढ़ाने वाला है। इतना पैसा बढ़ाने वाला कि आपकी उम्मीदें, गणित, सोच कम पड़ जायेगी! इसमें शेयर मार्केट के उतार-चढ़ाव जैसा डर नहीं। सोने की चोरी जैसी चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ेगी, बस आपको इसके लिए - ‘पॉलिटिक्सयानिराजनीतिमें आना है। नेता बनना है। उम्र, शिक्षा का कोई बंधन नहीं। रिटायर्डमेंट की कोई चिंता नहीं! यदि भगवान ने चाहा और कुर्सी पर ही मर गये, तो राष्ट्रीय सम्मान के साथ राष्ट्रीय ध्वज को उढ़ाया जायेगा। आपके गुण-अवगुणों को भूलकर लोग फूल चढ़ायेगें और जय-जयकार करेंगे।राजनीतिसे बड़ा और बेहतर निवेश कोई नहीं है इसमें पैसा पाँच साल में पाँच सौ गुना बढ सकता है और अगर आपमेंठीक-ठाक समझहै, तो हजार गुना बढ़ने में भी समय नहीं लगेगा।
मैं बचपन से यह फिल्मी गीत सुनते रहा हूँ कि, ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती...मेरे देश की धरती सोना जरूर उगलती है, मगर किसानों, मजदूरों और आम आदमी के लिए नहीं, देश के नेताओं के लिए अफसरों के लिए और पूँजीपतियों के लिएसोनाउगलती ही नज़र आती है।
मैं तो कहता हूँ भैय्या...! यदि देश की गरीबी वाकई खत्म करना हो तो सबकोविधायकबना दो। देखते-ही-देखते देश की गरीबी खत्म हो जायेगी। कुर्सी का प्रताप ही ऐसा है! क्योंकि पैसा बनाने का गुण नेताओं के पास है और राजनीति की धरतीउनके लिए वास्तव मेंसोना और हीरे-मोतीउगलती है! राजनीति में आते ही नेता, करोड़ नहीं अरब-खरबपति बन जाते हैं। राजनीति मेंपैसों के रास्तेआने वालों के लिए ही जगह बची है। धन के निवेश की सबसे अच्छी जगह राजनीति ही है। राजनीतिक दल भी अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के बजाय ऐसे लोगों को भेजना पसंद करते है जो पार्टी के खजाने को बढ़ाने में मदद करें और इस बहाने अपना खजाना भी बढ़ाते हैं। अरेभई...‘राजनीति की नदी में रहने वाली मछली, कब पानी पी लेती है पता भी तो नहीं चलता न।’!
यदि आपको अब भी मेरे फार्मूले पर भरोसा हो तो अपने आस-पास नज़र डालिये याद कीजिए...आपके पार्षद साहब या साहिबा की हालत पाँच साल पहले कैसी थी?! आपके विधायक पाँच साल पहले सिर्फ स्कूटर पर चलते थे ?, उन्होंने बड़ी वाली कार तो अभी हाल ही में ली है। और सांसद साहब पर भी एक नज़र डाल लीजिएगा। इसके बाद भी पैसा कमाने के लिए दूसरे रास्ते अपनाना चाहते हैं तो फिर आपकी मर्जी। लेकिन इस फार्मूले में वैधानिक चेतावनी भी साथ है कि इससे होने वाले खतरों या जाँचों के लिए जिम्मेदार आप स्वयं होगें।
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